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सम्मेद शिखर जी बचाने को मुनि ने त्याग दिए प्राण, 25 दिसंबर से थे अनशन पर |
सम्मेद शिखर जी बचाने को मुनि ने त्याग दिए प्राण, 25 दिसंबर से थे अनशन पर :-
सम्मेद शिखर बचाने को मुनि ने त्याग दिए प्राण सुज्ञेयसागर महाराज 25 दिसंबर से थे अनशन पर; झारखंड के फैसले का जैन समाज कर रहा विरोध।
तीर्थराज श्री सम्मेद शिखर जी को बचाने के लिए मुनि श्री सुज्ञेयसागर जी महाराज ने 25 दिसंबर को अनशन के माध्यम से अपने देह को त्याग दिया इसके प्रतिरूप पूरी समाज में एक विरोध की लहर दौड़ गई है।
सांगानेर में विराजित मुनि 108 सुज्ञेयसागर महाराज ने मंगलवार को अपनी देह त्याग दी। परम पूज्य चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य सुनीलसागर गुरुदेव के शिष्य सुज्ञेयसागर झारखंड में स्थित सम्मेद शिखर का बचाने के लिए आमरण अनशन कर रहे थे।
जैसे ही इस संबंध में जानकारी प्राप्त हुई मुनि श्री अज्ञेयसागर जी महाराज सांगानेर में विराजित थे और एक कठिन साधना कर रहे थे और इसी साधना के तहत अनशन उपवास करते हुए मुनि ने अपने प्राण त्याग दिए जिस पर समाज ने मोन क्रोध भी जाहिर किया।
यह सब कुछ झारखंड के गिरिहीड जिले में स्थित सम्मेद शिखरजी को बचाने के लिए किया जा रहा था, और अंततः अनशन के तहत अपने प्राणों को समर्पित कर दिया जिन धर्म की आराधना और प्रभावना बनी रहे आपका इसमें यही भावना थी इसी भावना के साथ आपने इस देह को त्याग दिया। लेकिन इस घटना से पूरी समाज दुखी है पूरे समाज में आक्रोश है और सरकार के प्रति भी एक रोष की लहर पैदा हुई है कि सम्मेद शिखर को शीघ्रातिशीघ्र जैन तीर्थक्षेत्र घोषित किया जाए और पर्यटन क्षेत्र का निर्णय वापस दिया जाये।
मुनि श्री ने शरीर को त्याग दिया तो ये इसलिए नहीं कि एक हटा ग्रह था मुनि हटा ग्रह से शरीर नहीं त्यागते उन्हें अंदर से जिन धर्म की प्रभावना आराधना की ही भावना थी इसलिए मोन रहकर आमरण अनशन व्रत लेकर समाधि में लीन हो गए और इसी के साथ अपने शरीर को त्याग दिया।
सम्मेद शिखर तीर्थ क्षेत्र यह मात्र एक स्थान ही नहीं है बल्कि जैन धर्म की आस्था का एक बहुत ही बड़ा केंद्र है, ये केंद्र था, है और रहेगा इसमें किसी भी प्रकार की दोराय नहीं है।
जैन धर्म जैन धर्म की पहचान और जैन धर्म की मान्यता दूसरे धर्म को आहत किए बिना है।
सब की रक्षा हो, सबका हित हो , यही भावना भाता है तो सरकार से जैन धर्म के आलंबियों की यही गुहार है कि इसे तीर्थ क्षेत्र घोषित किया जाय।