संस्कारहीन माता-पिता या बच्चें ? |
वर्तमान समय में जब भी संस्कार की बात चलती है, तो एक दूसरों पर आरोप प्रत्यारोप लगाया जाता है, कोई कहता है कि माता पिता संस्कारहीन होते जा रहे हैं अर्थात् अपने कर्तव्य को भूलते जा रहे हैं, तो कोई कहता है कि बच्चे संस्कारहीन होते जा रहे हैं अर्थात् अपने कर्तव्य को भूलते जा रहे हैं, मूल कारण क्या है, इसका कोई विचार भी नहीं करता है क्योंकि कोई भी खुद को दोषी मानना नहीं चाहता।
संस्कार की जब भी बात चलती है, तो कहा जाता है कि आजकल के बच्चों में संस्कार नहीं है ?
बड़ों की बात नहीं मानते हैं ?
बड़ों का सम्मान नहीं करते हैं ? इत्यादि अनेक IPC धाराओं के तहत बच्चों को अपराधी घोषित किया जाता है और यह उस सभा में घोषित किया जाता है जिस सभा में सभी युवा वर्ग और बुजुर्ग वर्ग होते हैं।
जिस प्रकार चूहे अपनी सभा में स्वयं को शक्तिशाली मानते हुए शेर को शक्तिहीन घोषित करते हैं उसी प्रकार युवा वर्ग और बुजुर्ग वर्ग अपनी सभा में स्वयं को संस्कारवान और नीतिवान मानते हुए समस्त आरोप, निर्दोष छोटे-छोटे बच्चों के ऊपर लगाया जाता है बच्चों के ऊपर आरोप हीं नहीं लगाया जाता है बल्कि उन्हें सजा भी सुना दी जाती है।
कोई विचार भी नहीं करता, कि पहले के समय के बच्चे संस्कारवान क्यों थे ? और आज के समय के बच्चे संस्कार हीन क्यों होते जा रहे हैं ? पहले के बच्चों में ऐसी क्या खासियत थी, जो आज के समय के बच्चों में वैसी खासियत देखने को नहीं मिलती ।
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कोई तो कारण होगा, क्योंकि बिना कारण से इतना बड़ा परिवर्तन समाज में नहीं देखा जा सकता है। कभी युवा वर्ग या बुजुर्ग वर्ग को यह अनुभव भी नहीं होता, कि कहीं हमारी गलती तो नहीं है ? जिसके कारण बच्चे संस्कार हीन होते जा रहे हैं, कोई तो कारण होगा जिसके कारण बच्चे संस्कार हीन होते जा रहे हैं, क्योंकि बच्चों के प्रथम गुरु के रूप में माता को स्वीकार किया गया है, जब माता को प्रथम गुरु के रूप में स्वीकार किया गया है तो क्या कोई गलती माता की तो नहीं है जिसके कारण बच्चे संस्कार हीन होते जा रहे हैं। कोई तो गंभीर बात होगी क्योंकि संस्कार की हीनता का यह मसला आज एक परिवार का नहीं है, एक समाज का नहीं है, एक देश का नहीं है, बल्कि यह मसला संपूर्ण दुनिया का बना हुआ है
बच्चे संस्कार हीन होते जा रहे हैं इसमें माता-पिता का भी विशेष योगदान है क्योंकि माता-पिता ने सही समय पर बच्चों को सही संस्कार नहीं दिए हैं इसलिए वर्तमान समय में इतनी बड़ी समस्या सामने आ रही है ।
आज के समय में माता-पिता को बच्चों से कोई भी काम करवाना होता है, तो वह बच्चों को रिश्वत देते हैं और अपना काम करवाते हैं माता-पिता तो समझते हैं कि हमने तो कुछ पैसे ही तो दिए हैं और अपने ही बच्चे को दिए हैं लेकिन वह यह नहीं समझते कि इसी माहौल में उनके बच्चें की मानसिकता भी तैयार होती जाती है कि कोई भी काम किया जाए तो बिना पैसों के कोई भी काम नहीं करना चाहिए और बच्चे इसी विचारधारा के साथ बड़े होते हैं, तो वह मात्र स्वयं के बारे में ही सोचते हैं और माता पिता की सेवा आदि भी करना नहीं चाहते हैं, क्योंकि माता पिता ने ही तो उन्हें स्वार्थी बनाना है। और रिश्वतखोरी की परंपरा के बीज भी यहीं से अंकुरित होते हैं।
फिर किस प्रकार बच्चों से काम करवाना चाहिए?
माता-पिता को बच्चों को इस प्रकार समझाना चाहिए, कि जिससे बच्चों में अपनत्व की भावना पैदा हो जावें, यदि एक बार बच्चों के दिल और दिमाग में अपनत्व की भावना आ जावे, तो वह समय दूर नहीं रह जाएगा, जिससे वह बालक एक अच्छा पुत्र बनने के साथ-साथ एक अच्छा संस्कार युक्त नागरिक भी बनकर खड़ा हो जाएगा।
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आजकल हर व्यक्ति अपने बच्चों को अच्छे से अच्छे स्कूलों में, अच्छे से अच्छे कॉलेजों में और अच्छे से अच्छे विश्वविद्यालयों में पढ़ाने की इच्छा रखता है, जो कि अच्छी ही बात है, लेकिन बच्चों को मात्र शिक्षा ही देना उन्हें अपंग बनाने जैसा हैं।
आजकल के माता पिता अपने बच्चों को वो हर चीज देना चाहते हैं जो उनके बच्चों ने मांग की हो और साथ ही माता पिता भी बच्चों से ऐसे ही प्रश्न करते हैं, कि तुम्हें और क्या चाहिए ? और बच्चे भी मुझे यह चाहिए ? मुझे वह चाहिए ? इत्यादि माता-पिता से मांगते ही रहते हैं इसलिए बच्चे मात्र दूसरों से लेने के बारे में ही सोचते रहते हैं कभी मुझे भी किसी दूसरे की मदद करनी चाहिए, किसी बड़े बुजुर्ग की सेवा करनी चाहिए इत्यादि विचार भी नहीं करते है क्योंकि माता-पिता भी कभी इस बात की ओर ध्यान भी नहीं देते, कि हमें दूसरों की मदद, सेवा इत्यादि करनी चाहिए।
हर एक व्यक्ति के विकास के दो कदम होते हैं।
1. एक शिक्षा
2. तो दूसरा संस्कार।
आज के माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा तो अच्छी देना चाहते हैं, लेकिन संस्कार देना भूल जाते है, यही छोटी सी गलती उनके लिए भविष्य में बड़ी विकराल समस्या बनकर सामने आती है। इसलिए कहा जाता है कि
संस्कार बिना सुविधाएं पतन का कारण हैं।
संस्कार बिना मनुष्य चलता फिरता बारुद के समान है, जिससे समाज को हर समय विकराल समस्या की आशंका बनी ही रहती है।
आखिरकार संस्कार हीन कौन है संस्कारहीन माता-पिता या बच्चें ?
यह एक सवाल है,
इसका जवाब माता पिता या बच्चे है इससे आरोप प्रत्यारोप ही पोषित होंगे इसलिए कांटो से बचने के लिए संपूर्ण पृथ्वी पर फूल फैलाने की आवश्यकता नहीं है बल्कि खुद अपने पैरों में चप्पल या जूते पहनकर संपूर्ण पृथ्वी का भ्रमण किया जा सकता है जो कि संभव भी है