फिलॉस्फर By Vijay Soudai - Philosopher Book Review & Summary in hindi |
"फिलॉस्फर" उपन्यास की समीक्षा - Philosopher Book Review :-
फिलॉस्फर जीवन गाथा है, एक ऐसे अदीब की, जिसके हिस्से में नफरत, घृणा, भटकाव, जलावतन, भूख, गरीबी और दुखों का विशाल समुंदर आया। वह दुनिया को सच्चाई का, प्यार का, भाईचारे का, वसुधैव कुटुंबकम का पैगाम देना चाहता था। वह कई बड़े राष्ट्रों की आंखों में किरकिरी बना हुआ था। किसी भी राष्ट्र में उसकी आमदगी आने वाले तूफान का संकेत होती थी, जिसमें बडे-बडे राज सिंहासन हिल जाया करते थे। और कमाल...बड़े से बड़ा लालच, वैभव और सम्मान उसकी कलम की नोक को टेढ़ा तक न कर पाया।
नारी जाति से उसका विशेष लगाव और नारी उत्थान की उसकी सोच को बड़े-बड़े दार्शनिकों ने व्याभिचारी प्रवृत्ति का नाम दिया। उसकी कलम की नोक हिंदुस्तान के हलक में तीखा खंजर बन पेवस्त हुई तो उसे देशद्रोही करार दिया गया। सच बयानगी पर उसकी जान पर बन आई। पर वह अदीब था... सच्चा अदीब। उसके धड से गर्दन बेशक अलग हो सकती थी परंतु उसकी कलम की नोक में बाल बराबर भी झुकाव नहीं आ सकता था।
Read also :-
• संस्कारहीन माता-पिता या बच्चें ?
देश छुटा तो अमेरिका उसके कदमों में बिछ गया क्योंकि अमेरिका उसकी कलम का मुरीद था लेकिन जब अदीब की कलम से निकलते जहर बुझे बाणों ने अमेरिका का ही सीना बेंध दिया तो अमेरिका की CIA उसकी जान की दुश्मन बन गई। क्योंकि अमेरिका की बाहरी दुनिया में ही जमकर थू-थू नही हुई ही थी बल्कि गृह युद्ध के आसार बन गए थे। लेकिन नियति अदीब के खिलाफ थी और उसके लिए कुछ और ही सोचे बैठे थी। किस्मत ने उसे पाकिस्तान की सरजमीं पर ला पटका लेकिन यहां के सियासतदानों ने भी उसे अपना मोहरा बना, अपने विरोधी राष्ट्र के खिलाफ इस्तेमाल करना चाहा लेकिन वह साफ मुकर गया और उनकी धर्मांधता को ही दुनिया के सामने नंगा करने का दुस्साहस कर बैठा। नतीजन उसके खिलाफ फतवा जारी कर दिया गया। धर-पकड़ हुई और पड़ोसी मुल्क ने उसे अपनी काल कोठरी का मेहमान बनाया। लेकिन शुरू से ही मौके की ताक में बैठे मार्क्सवादी रूस ने पाकिस्तान की ईट से ईट बजा दी और अदीब को आजादी दिलाई। अदीब रूस पहुंच गया मगर अमेरिका, पाकिस्तान और साथ ही हिंदुस्तान की धर्मांध सरकारों ने उसे नेस्तनाबूद करने की कसम खा चुकी थी।
एक ऐसा अदीब, जो एक समय दर-बदर होकर ठोकरें खाने को अभिशप्त था, जिसकी रातें कड़कती ठंड में खुले आसमान के नीचे गुजरती थी, आज एक विवादास्पद अंतरराष्ट्रीय शख्सियत बन चुका था। जिसका एक कथन मीडिया की सुर्खियां ही नहीं बनता था बल्कि किसी भी मुल्क की सरकार को अस्थिर करने के लिए पर्याप्त था।
कहते हैं दुनिया गोल है और अदीब भी एक बार फिर उसी मोड़ पर पहुंच गया, जहां से उसकी शुरुआत हुई थी। लेकिन इस स्थिति में एक सुखद पहलू यह भी था कि जहां उसके दुश्मनों की संख्या हजारों में थी, वही उसके प्रशंसक भी करोड़ों में थे। उसके प्रशंसक उसकी किताब और उसकी एक झलक के लिए दीवाने रहते थे।
वह खुश था ... बहुत खुश, जो उसने बचपन में सपना देखा था, उसे हकीकत में बदल दिया था। लेकिन नियति शुरुआत से ही उसकी धुर-विरोधी थी और एक दिन नियति का भी दिन आया और....??????
Read also :-
• 'तेरा नाम इश्क' पुस्तक की समीक्षा
आखिर क्यों पढ़ें 'फिलॉस्फर' :-
प्रस्तुत उपन्यास में रंक से राजा बनने तक के बीच के संघर्ष को मार्मिक तरीके से बताने की कोशिश की है या फिर ऐसा कहा जा सकता है कि सफल व्यक्ति के इनपुट को प्रदर्शित किया गया है।
Buy now 👉 फिलॉस्फर Amazon link