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समाज का नाम ऊंचा करना शिक्षा से ही संभव हैं : डॉ. भीमराव आंबेडकर

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समाज का नाम ऊंचा करना शिक्षा से ही संभव हैं

समाज का नाम ऊंचा करना शिक्षा से ही संभव हैं :-

एक व्यक्ति के नाते नाम कमाना और साथ में अपने समाज का नाम भी ऊंचा करना केवल शिक्षा से ही संभव हो सकता है।
डॉ. भीमराव आंबेडकर (1891-1956) ने कहा है कि
आज कानूनन हमने सरकारी नौकरियों में अपना अनुपात तय करवा लिया, तो भी उन्हें पाने के लिए सही शिक्षा प्राप्त कर अपने में काबिलियत (योग्यता) पैदा किए बगैर हमारी अधिकार प्राप्ति की मांगें अपना असर खो बैठेंगी।

10 सितंबर, 1932 को मुंबई में दिए गए भाषण के संपादित अंश से :-

मंडल की ओर से मेरे स्वागत में पुष्पहार की खरीदारी पर जो रुपया खर्च किया गया है। उसे किसी और उपयुक्त काम में लगाया जा सकता था। आज अस्पृश्य समाज के सामने बेहद जरूरी अगर कोई काम है तो वह है शिक्षा के प्रसार का काम समाज के हर व्यक्ति तथा हर संस्था को शिक्षा के क्षेत्र में अपनी युवा पीढ़ी के कदम आगे कैसे बढ़ेंगे? इस ओर ध्यान देना चाहिए तथा उसी दिशा में अपने काम की ओर नजर रखनी चाहिए। हमने खुद भी यही काम शुरू किया है। और उस हिसाब से काम जारी रखा है। इसका प्रमाण है फिलहाल चल रहे तीन बोर्डिंग। महाराष्ट्र के बच्चों के लिए ठाणे का बोर्डिंग, कर्नाटक के शिशुओं के लिए धारवाड़ का बोर्डिंग और गुजरात के बच्चों के लिए अहमदाबाद का बोर्डिंग। इन तीनों जगहों पर आज की तारीख में करीब सौ बच्चों की व्यवस्था की गई है। इस देश की उच्च नीचता दृढमूल होने के लिए जाति व्यवस्था तो कारण है ही, लेकिन उसे स्थायित्व मिला, तो जाति के गुणों के कारण कुछ जातियों की वरिष्ठता अन्य जातियों में पाए गए शिक्षा के अभाव के कारण कायम रही। बड़ी बड़ी सरकारी नौकरियों अथवा रौबदाब रखने वाली नौकरियों में अस्पृश्य समाज को प्रवेश की अनुमति नहीं, इससे प्रत्यक्ष व्यवहार में इस समाज की उपेक्षा तो हो ही जाती है, लेकिन इस समाज की ओर देखने का अन्य समाज का दृष्टिकोण भी नष्ट करना है, तो उसका सटीक उपाय है, इन बड़ी-बड़ी नौकरियों को पाना आज डिप्टी कलक्टर के पद पर काम कर रहे एक युवक का उदाहरण इस मामले में दिया जा सकता है। वे जिन-जिन जिलों में जाते हैं, वहां के अस्पृश्य समाज को अपने सिर पर कृपाछत्र होने का अहसास तो होता ही है। साथ ही बाकी समाज द्वारा अस्पृश्यों के साथ हेय मानने की मानसिकता भी कम हो जाती है। ऐसे अनेक अधिकारी होंगे, तो आज की यह स्थिति पलटने में देर नहीं लगेंगी। लेकिन एक बात हमेशा हमें ध्यान में रखनी चाहिए कि अभी जिसका उदाहरण दिया, उस व्यक्ति ने यदि उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की होती, तो क्या उसे यह स्थिति नसीब होती? घोर मेहनत कर अगर उन्होंने शिक्षा प्राप्त नहीं की होती, तो क्या उन्हें आज का यह दिन देखने मिलता ? इसीलिए कहता हूं कि एक व्यक्ति के नाते नाम कमाना और साथ में अपने समाज का नाम भी ऊंचा करना केवल शिक्षा से ही संभव हो सकता है।
आज कानूनन हमने सरकारी नौकरियों में अपना अनुपात तय करवा लिया, तो भी उन्हें पाने के लिए सही शिक्षा प्राप्त कर अपने में काबिलियत (योग्यता) पैदा किए बगैर हमारी अधिकार प्राप्ति की मांगें अपना असर खो बैठेंगी। इसमें दुर्बलता के कारण अपनी ही चीज हम पा नहीं सकेंगे। गोलमेज सम्मेलन हो या कोई और जगह हो, हर बार अस्पृश्य समाज के लिए विधिमंडल में आरक्षित जगहों की मांग करते हुए मुझे हमेशा इस बड़े सवाल ने परेशान किया है। लेकिन अस्पृश्यों की बढ़ती महत्वाकांक्षाएं और दिनोंदिन उनमें बढ़ती जा रही शिक्षा पाने की लालसा पर मुझे पूरा भरोसा था। पिछले जमाने के साथ तुलना करने से आज अस्पृश्य समाज में उपलब्ध ज्ञानार्जन के साधन तथा स्थितियों में आए फर्क के कारण उत्साह बढ़ता है। 

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