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शास्त्रों और वैज्ञानिकों के अनुसार भोजन के नियम

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शास्त्रों और वैज्ञानिकों के अनुसार भोजन के नियम

शास्त्रों और वैज्ञानिकों के अनुसार भोजन के नियम :-

बल, आयु, रूप और गुण प्रदान करने वाला भोजन महज स्वाद के लिए खाई जाने वाली कोई चीज नहीं है। इसलिए प्राचीन ग्रंथों में भोजन के नियम बताए गए हैं, जिनका आधार शरीर क्रिया, विज्ञान, चिकित्सा और मनोविज्ञान हैं।

शास्त्रों के अनुसार भोजन के नियम :-

वसिष्ठस्मृति, स्कंदपुराण में कहा गया है कि भोजन हमेशा एकांत में ही करना चाहिए।

पद्यपुराण, सुश्रुतसंहिता, महाभारत में कहा गया है कि दोनों हाथ, दोनों पैर और मुख इन पांच अंगों को धोकर ही भोजन करना चाहिए। ऐसा करने वाला शतायु होता है।

स्कंदपुराण में कहा गया है कि भोजन करते समय मौन रहना चाहिए।

महाभारत, तैत्तिरीय उपनिषद् में कहा गया है कि परोसे हुए भोजन की निंदा नहीं करनी चाहिए। वह स्वाद में जैसा भी हो, उसे प्रेम से ग्रहण करना चाहिए।

स्कंदपुराण में कहा गया है कि रात में भरपेट भोजन नहीं करना चाहिए।

मनुस्मृति, सुश्रुतसंहिता में कहा गया है कि सोने की जगह पर बैठकर खानपान न करें, हाथ में लेकर भी कुछ न खाएं अर्थात् पात्र में लेकर ही खाएं।

नीतिवाक्यामृतम् में कहा गया है कि बहुत थके हुए हों तो आराम करने के बाद ही कुछ खाए-पिएं। अधिक थकावट की स्थिति में कुछ भी खाने से ज्वर या उलटी होने की आशंका रहती है।

मनुस्मृति में कहा गया है कि जूठा किसी को न दें और स्वयं भी न खाएं, चाहे वह आपका छोड़ा हुआ अन्न ही क्यों न हो। भोजन के बाद जूठे मुंह कहीं न जाएं।

चरकसंहिता में कहा गया है कि जो सेवक स्वयं भूख से पीड़ित हो और उसे आपके लिए भोजन लाना पड़े तो ऐसा भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। जो आपके प्रति प्रेम-स्नेह नहीं रखता उसका अन्न भी नहीं खाना चाहिए।

बोधायनस्मृति, कर्मपुराण में कहा गया है कि खाने की चीजों को गोद में रखकर नहीं खाना चाहिए।

कूर्मपुराण में कहा गया है कि अंधेरे में, आकाश के नीचे, देवमंदिर में भोजन नहीं करना चाहिए। इसी तरह एक वस्त्र पहनकर सवारी या बिस्तर पर बैठकर, जूते चप्पल पहने हुए और हंसते या रोते हुए भी कुछ नहीं खाना चाहिए।

वैज्ञानिकों के अनुसार भोजन के नियम :-

वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य के प्रकाश में अल्ट्रावायलेट और इन्फ्रारेड नाम की अदृश्य किरणें होती हैं। इन किरणों के धरती पर पड़ते ही अनेक सूक्ष्म जीव यहाँ वहाँ भाग जाते हैं अथवा उत्पन्न ही नहीं होते, किन्तु सूर्य अस्त होते ही वे कीटाणु बाहर निकल आते हैं, उत्पन्न हो जाते हैं। रात्रि में भोजन करने पर वे असंख्यात सूक्ष्म त्रस जीव जो भोजन में मिल गए थे मरण को प्राप्त हो जाते हैं अथवा पेट में पहुँचकर अनेक रोगों को जन्म देते हैं। चिकित्सा शास्त्रियों का अभिमत है कि कम से कम सोने से तीन घंटे पूर्व तक भोजन कर लेना चाहिए। रात्रि में भोजन करते समय यदि चींटी पेट में चले जाये तो बुद्धि नष्ट हो जाती है, जुआ से जलोदर रोग उत्पन्न हो जाता हैं, मक्खी से वमन हो जाता है, मकड़ी से कुष्ट रोग उत्पन्न हो जाता है तथा बाल गले में जाने से स्वर भंग एवं कंटक आदि से कण्ठ में (गले में पीड़ा आदि अनेक रोग उत्पन्न हो जाते है। अतः स्वास्थ्य की रक्षा हेतु भी रात्रि भोजन का त्याग अनिवार्य है।
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