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समाज बदला, वैसे ही लेखन में बदलाव की जरूरत : सत्य व्यास

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समाज बदला, वैसे ही लेखन में बदलाव की जरूरत : सत्य व्यास

समाज बदला, वैसे ही लेखन में बदलाव की जरूरत : सत्य व्यास

उपन्यास 'चौरासी' पर वेबसीरीज 'ग्रहण' बन चुकी है, इसके राइटर सत्य व्यास बोले-

समाज बदला, वैसे ही लेखन में बदलाव की जरूरत!

यह किताबों का स्वर्ण युग चल रहा है। क्योंकि जितनी फिल्में किताबों पर बनी है उतना पिछले 50 साल में नहीं हुआ मेरी पाच आई है इनमें चौरासी पर तो बेबसीरीज ग्रहण बन गई, तीन अन्य के भी राइट्स बिक गए है। जिस तरह समाज में बदलाव आ रहे हैं, उसी तर्ज पर लेखन में भी परिवर्तन की जरूरत है। यह कहा राइटर सत्य व्यास ने।

ये एक कार्यक्रम में रायपुर पहुंचे। पत्रिका से खास बातचीत में अपनी राइटिंग की जर्नी साझा की। साथ में नए कलाकारों से कहा कि लिखने की पहली तो यही है कि खूब पढ़ा जाए। मेरी पहली किताब 35 की उम्र में आई तब तक मैंने खूब पढ़ा। भाषा में शुद्धिकरण बनाए रखें। कठिनतम शब्दों के प्रयोग से क्योंकि किताब सरलता और तरलता से चलती है और पाठकों के मन-मस्तिष्क में जगह बनाती है। इसलिए किताब मत लिखिए कि कोई कहानी है आपके पास बल्कि पहले भाषा पर पकड़ बना व्याकरण और शब्द संयोजन पर कमांड हासिल कीजिए। किताब तभी प्रकाशित कराएं जब आपको लगे कि उसे खरीदकर पढ़ा जाएगा। 

सत्य व्यास को लेखन की प्रेरणा कैसे मिली :-

मैंने जावेद साहब की नज्म पढ़ी थी जिसके बोल है मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है। मैंने गया ही नहीं, भुला ही नहीं, मिटा ही नहीं जैसे शब्द जोड़कर जब दोस्ती को सुनाया तो उन्हें लगा पूरी की पूरी मैंने लिखी है। जब वे डिफरेंस नहीं कर पाए तो मुझमें लिखने का आत्मविश्वास आया। अब तक मैंने चौरासी, बनारस टॉकीज, दिल्ली दरबार, बागी बलिया और उपफ कोलकाता लिखी।

लेखक न होता तो कुछ नहीं होता : सत्य व्यास

वैसे तो मैं क्रिकेटर बनना चाहता था लेकिन बन नहीं पाया। अगर लेखक न होता तो कहीं नौकरी कर रहा होता। इसलिए यही कहूंगा कि लेखक न होता कुछ नहीं होता।


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