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चुनाव के ठीक पहले, शिखरजी के नाम से दी मीठी गोली? |
चुनाव के ठीक पहले, शिखरजी के नाम से दी मीठी गोली?
जय जिनेन्द्र
यह पुख्ता समाधान नहीं है। इससे पहले जैसी स्थिति तो बन जाएगी पर जैन समाज को नया कुछ भी हासिल नहीं हुआ। इस मेमोरेंडम से इतना तो होगा कि जो घोर अपवित्र गतिविधियां वहां होनी थी, उनका प्रावधान खत्म हुआ परंतु
1. पर्वतराज को पवित्र तीर्थ घोषित नहीं किया है, मात्र पर्यटन संबंधी गतिविधियों जैसे कैंपिंग, ट्रेकिंग, मांस मदिरा भक्षण आदि पर रोक लगाई है।
2. राजपत्र से वो बिंदु नहीं हटाया गया जिसमें लिखा है कि पारसनाथ पर्वत का एक भाग जैनों का तीर्थ माना जाता है। पूरा का पूरा पर्वत हमारा है।
3. दिशोम मांझी स्थानम करके जो मंदिर पहाड़ पर बनाया गया है , वह 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का उल्लंघन है। उस मंदिर को हटाना चाहिए।
4. पर्वत के 5 km के रेडियस में मांस मदिरा आदि पर अभी भी बैन नहीं है।
5. जैसे मथुरा, वैष्णो देवी, काशी विश्वनाथ, तिरुपति जैसे मंदिरों में चेकिंग होती है, उसका भी प्रावधान अभी नहीं हुआ है।
6. पर्वत पर बाइक और मोटर व्हीकल पर अभी भी रोक नहीं लगी है ईको सेंसिटिव जोन होने के बावजूद।
7. स्थानीय प्रशासन की सख्ती के बिना कुछ भी संभव नहीं है। मात्र कानून बनने से पालन हो जाएगा, ऐसा असलियत में नहीं होता। उसके लिए हमें लगातार स्थानीय प्रशासन पर दबाव बनाना होगा।
भ्रामक है जैन समाज को गुमराह कर रहे हैं इस तरह का ज्ञापन जारी नहीं होता है सीधा चार लाइन का एक नोटिफिकेशन जारी होना चाहिए कि पूर्व में 2018 को जो राज्य सरकार का प्रस्ताव था उसके आधार पर जो अधि सूचना केंद्र सरकार ने जारी की है उसको निरस्त किया जाता है।
भारत सरकार ने किसानों के तीनों बिल वापिस लिये कोई समिति गठित नहीं की गई। *समितियों का गठन तब होता है जब तत्काल विरोध मिटाना हो, एवं भविष्य में मनमर्जी करना हो, या मामले को लंबे समय तक लटकाना हो, समय तय होने पर भी समय बढाते रहते हैं, फिर समिति की सिफारिशें मानने के लिए सरकार प्रतिबद्ध भी नही होती, राजपत्र वापिस एक समाधान है।
2024 के चुनाव को देखते हुए मीठी गोली दी गई है, चुनाव बाद फिर यही पर्यटन घोषित कर दिया जायेगा, सरकार की मंशा सही नहीं है, अभी विरोध शांत करने एवं जैनियों का चुनाव में समर्थन लेने की कवायद की गई है ।