-->

Search Bar

हम सब आदिवासी हैं : We are all tribals

हम सब आदिवासी हैं!, Save Shikharji, Save sammed Shikhar, अभय कुमार जैन, Abhay Kumar Jain, सम्मेद शिखरजी, सम्मेद शिखर हमारा है, आदिवासी
हम सब आदिवासी हैं!

हम सब आदिवासी हैं :-

सम्मेद शिखर और अयोध्या अनादि से है।
आज जंगल क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए सरकार ने शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, राजनीति में प्रतिनिधित्व आदि अनेक सुविधाएं/अवसर प्रदान करने के लिए आदिवासी वर्ग में परिगणित कर महत्वपूर्ण कार्य किया है। इससे पर्वतीय, जंगल आदि में विकट एवं संकट ग्रस्त जीवन जी रहे मेहनतकश लोगों को बहुत बडा सहारा मिला है। इससे धीरे धीरे आदिवासी लोग लोकतंत्र की मुख्य धारा में आ रहे हैं।

यहां मुख्यरूप से वनवासी को आदिवासी कहा जा रहा है। जो शहरी संस्कृति से दूर परम्परागत जीवन यापन कर रहे हैं। इनके पास हजारों सालों का परम्परागत अनुभव है जो शायद भौतिक विज्ञान में नहीं है। आज उनकी अशिक्षा और ग़रीबी की आड में उन्हें भडकाकर शिखरजी बचाओ के स्थान पर पारस नाथ पर्वत की पवित्रता और मर्यादा को दूषित करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, आदिवासी के नाम पर।

आदिवासी कौन नहीं हैं?

हम सब आदिवासी हैं, उनकी ही सब सन्तानें हैं। अनादि वासी कोई नहीं है। जब मनुष्य सामाजिक नहीं हुआ था तब प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ के पिता राजा नाभिराज ने प्रकृति में रहना सिखाया और भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव) ने असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, शिल्प और विद्या - इन छह कर्म कर जीविकोपार्जन करना सिखाया। आदिनाथ द्वारा उपदिष्ट हम सब आदिवासी ही तो हैं। कुछ लोग ज्ञान, विज्ञान के कारण शहर, गांव वसाकर आधुनिक जीवन जी रहे हैं कुछ जंगल, पर्वत पर रह कर जीवनयापन कर रहे हैं। हैं तो सभी आदिवासी ही। इसलिए आदिवासी और प्रकृति पूजक होने के नाम पर पूरी पृथ्वी पर कब्जा करने का अधिकार तो नहीं मिल जाता है। कुछ नियम, कानून भी होगा।

जंगल में रहने वाले आदिवासी प्रकृति पूजक हैं तो शहर, गांव में रहने वाला प्रकृति पूजक नही है क्या?

        पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि - इन पांच महाभूतों से पृथ्वी निर्मित मानी जाती है। सभी पृथ्वी को माता मानते हैं, जल, वायु, अग्नि, आकाश के देव मानते हैं। तुलसी, पीपल आदि की पूजा की जाती है। इसलिए सभी आदिवासी हैं और प्रकृति पूजक भी। जैनों में तो इन्हें स्थावर जीव मानकर यत्नाचार से अहिंसक प्रवृत्ति करने का नियम है।

आज तो जंगली क्षेत्रों में भी शहरी- विजली, सड़क, स्कूल, अस्पताल, पुलिस चौकी आदि सुविधाएं होने लगी हैं, आदिवास ST वर्ग में आरक्षित हैं जिन्हें हर क्षेत्र में आरक्षण भी मिलता है। सरकार जंगली आदिवासियों को शहरी आदिवासियों की तरह आधुनिक करने का प्रयास कर रही है अब तो हर के हाथ में मोवाइल है। आज वास्तविक आदिवासी तो जैन निर्ग्रन्थ साधु हैं जो हर मौसम में निर्विकार नग्न ही रहते है, नंगे पैर ही चलते हैं, हाथों आहार लेते हैं, हाथों से केशलोंच करते हैं। इनसे बडा कोई आदिवासी है तो बताओ?

हालांकि जंगलवासी को मुख्य धारा में आने के लिए समय लगेगा। अभी भी वहां का जीवन विकट और संघर्षपूर्ण है। लेकिन आदिवासी और प्रकृति पूजक के नाम पर अराजकता तो नहीं हो सकती है। 

लोकतंत्र में सभी जाति और धर्म वालों को समानता का अधिकार है। सभी को सुरक्षा का अधिकार है। फिर अल्पसंख्यक समुदायों को ही क्यों समय समय पर अलग थलग किया जा रहा है और क्यों?

जैन अहिंसक नीति में विश्वास करते हैं, ना किसी पर अतिक्रमण करते हैं ना विध्वंस। मनुष्यों में जैनों को गाय के समान सरल (दयालु) , पवित्र (अहिंसक) और उपयोगी (दानवीर) माना जाता है। केवल वोट बैंक के खातिर प्राचीनतम श्रमण संस्कृति को नष्ट, भ्रष्ट करना भारत देश के साथ अन्याय होगा।

आजादी के पश्चात सम्मेद शिखर को मरांग और गिरनार को दत्तात्रेय के नाम पर जैनों से छीना जा रहा है, वो भी लोकतंत्र का दुरुपयोग करके।

पहले हिन्दु, बौद्ध, जैन ऐसे नाम वाले धर्म नहीं थे। नीति, न्याय, सदाचार था फिर आगे चलकर श्रमण और वैदिक दो धारायें चलती रहीं। वर्ण चार थे जिनमें जैनों के सभी तीर्थंकर, बलभद्र, नारायण, प्रतिनारायण आदि 63 शलाका पुरुष क्षत्रिय कुलोत्पन्न थे। जैन भी अहिंसक क्षत्रिय हैं। जो व्रती, शान्त और अहिंसक लोग थे उन्हें भरत चक्रवर्ती ने ब्राह्मण कहा था। अहंकार, उग्रता और हिंसक प्रवृत्ति तो काल दोष से उत्पन्न हुई।

आदिनाथ की सच्ची सन्तान आदिवासियों (जंगलवासी) को शिखरजी की पवित्रता बचाने के लिए आगे आना चाहिए। तीर्थंकरों के कुल में उत्पन्न नीति, न्यायवान क्षत्रियों/राजपूतों को आगे आना चाहिए। जो सच्चे व्रती, शान्त, अहिंसक और सात्विक ब्राह्मणों को आगे आकर अपने पूर्वज तीर्थंकरों के धर्मस्थलों को बचाने के लिए आगे आना चाहिए। जैसे तालिवानों ने सत्तामद में बौद्ध मूर्तियों को नष्ट कर दिया था उसी प्रकार आज शासन प्रशासन का सहारा लेकर परम अहिंसक जैन धर्म के इतिहास, पुरातत्व एवं धर्मस्थलों को नष्ट किया जा रहा है। ये लोकतंत्र का मजाक है। आज नहीं तो कल सभी वारी वारी से चपेटे में आते रहेगे।

अत: भारतदेश के सभी नागरिकों से निवेदन है कि शिखरजी को अन्याय पूर्ण तरीके से किये जा रहे अतिक्रमण से बचायें।

Advertisement
BERIKAN KOMENTAR ()