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आदिवासियों को भी पर्यटन क्षेत्र हानिकारक |
आदिवासियों को भी पर्यटन क्षेत्र हानिकारक :-
ये बात भी समझना भी बहुत जरुरी है कि सरकारी पर्यटन क्षेत्र से स्थानीय लोगों के लिए ज्यादा खतरा है।
आज कल समूहों में ऐसा देखने को आ रहा है और सुनने भी आ रहा है जिसमे सम्मेद शिखर की समस्या को प्रायः जैन समाज से ही जोड़कर देखा जा रहा है क्योंकि वे इसके पर्यटन क्षेत्र घोषित होने का देश व्यापी विरोध कर रहे हैं किंतु यह समस्या सिर्फ इतनी ही नहीं है, यह समस्या वहां रहने वाले आदिवासी लोगों के लिए भी सही मायने में झेलनी पड़ेगी। इस क्षेत्र को यदि पर्यटन क्षेत्र बनाया जाता है तो स्थानीय जनजातियों के लिए भी खतरा है ।
पर्यटन क्षेत्र बनने से क्या होगा? इसलिए इन बातों पर सरसरी नजर जरूर डालना चाहिए।
1. पर्यटन क्षेत्र होगा तो पर्वत पर रोप वे बनेगा, उससे जैन तीर्थयात्रियों को तो आसानी हो जाएगी किंतु उन्हें डोली,गोदी में ले जाने वाले स्थानीय लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
2. रेस्टोरेंट, होटल और मॉल खुलेंगे तो स्थानीय लोगों की दुकानें तथा ढाबे बेकार हो जाएंगी।
3. प्रदूषण बढ़ेगा तो स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य तथा खेती पर विपरीत असर पड़ेगा।
4. पर्यटकों के बढने से पर्वत की आयु घटेगी क्योंकि जब पर्यटक बढेगे तो वह कचरा व प्लास्टिक बैग आदि भी वही डालेगे। साथ ही होटल आदि बनाने के लिए पहाड़ और पेड़ो को भी काटना होगा।
5. बड़े बड़े उद्योग व्यापार से जुड़ी गतिविधियां बढने से छोटे मोटे व्यापार जो चले आ रहे सभी खत्म हो जाएंगे।
6. जमीन महंगी होगी जिससे अपना मकान दुकान आम नागरिक की पहुंच से दूर हो जाएगी।
इसलिए यह बात सिर्फ जैन धर्म के अनुयायियों के लिए ही नहीं है बल्कि उन सभी स्थाई आदिवासियों के लिए भी है, जो किसी दूसरे व्यक्ति के बहकावे में आकर पर्यटन क्षेत्र बनने के समर्थन में अथवा किसी अन्य विवाद के कारण आपस में मतभेद खड़ा कर रहे हैं।
इसलिए आदिवासी समझदार बने बहकावे में न आए।