बहती नदी - सी है हिंदी भाषा बदलती रहती है इस पर तो सभी सहमत हैं, लेकिन भाषा में जो बदलाव आता है उसे लेकर राय अलग - अलग है। हिंदी दिवस के मौके पर पढ़ें, इस मुद्दे पर राहुल देव की राय :-
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भाषा को अंग्रेजी से खतरा, उर्दू से नहीं : राहुल देव (पत्रकार) |
भाषा को अंग्रेजी से खतरा, उर्दू से नहीं : राहुल देव
भारत में भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं है बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा और पहचान से भी जुड़ी हुई है। वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव का मानना है कि हिंदी भाषा को सबसे बड़ा खतरा अंग्रेजी से है, उर्दू से नहीं।
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Hindi Urdu difference
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भाषा पर अंग्रेजी का प्रभाव
हिंदी भाषा को खतरा
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भाषा का बदलता स्वरूप
भाषा हमेशा समय और परिवेश के साथ बदलती रहती है।
- 25 साल पहले मोबाइल फोन नहीं थे, आज मोबाइल और इंटरनेट से जुड़े सैकड़ों शब्द हमारी रोज़मर्रा की भाषा का हिस्सा बन चुके हैं।
- 'कार' या 'स्टार्टअप' जैसे शब्द ज्यों के त्यों हिंदी में शामिल हो गए।
- साहित्य और पत्रकारिता में भी नई जीवनशैली और तकनीकी शब्दों का उपयोग बढ़ रहा है।
लेकिन समस्या तब शुरू होती है जब हिंदी लेखन में पूरी की पूरी अंग्रेजी अभिव्यक्ति को उठा लिया जाता है। जैसे – “मेरे फादर यहाँ काम करते हैं, मेरी एल्डर सिस्टर वहाँ पढ़ती हैं”। क्या इसे हिंदी कहा जा सकता है?
हिंदी की गरिमा बनाम अंग्रेजी का प्रभाव
राहुल देव के अनुसार, हिंदी के युवा लेखक अपने लेखन में भाषा की गरिमा और शुद्धता (integrity) के प्रति सचेत नहीं हैं।
- हिंदी अखबार और चैनलों की भाषा से नई पीढ़ी प्रभावित होती है।
- अगर वहीं खिचड़ी भाषा मिलेगी तो पाठक भी उसी को हिंदी मान लेंगे।
- अंग्रेजी में इस तरह की भाषा मिलावट बहुत कम होती है।
इसलिए लेखक और पत्रकारों की जिम्मेदारी है कि वे अपनी भाषा को बचाए रखें।
हिंदी और उर्दू का रिश्ता
कई शुद्धतावादी और दक्षिणपंथी हिंदी से उर्दू-फारसी शब्द हटाने की मांग करते हैं। लेकिन यह सोचना गलत है।
- हिंदी और उर्दू दोनों एक ही परंपरा से विकसित हुई हैं।
- ‘कुर्सी’, ‘कमरा’, ‘कुर्ता-पायजामा’ जैसे शब्द हमारी संस्कृति में गहराई से जुड़े हुए हैं।
- उर्दू को गैर-हिंदुस्तानी मानना ऐतिहासिक और सांस्कृतिक भूल है।
राहुल देव का कहना है कि हिंदी पर असली खतरा उर्दू से नहीं, बल्कि अंग्रेजी के बढ़ते वर्चस्व से है।
भाषा पर अंग्रेजी का बढ़ता दबाव
आज अंग्रेजी का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाएं संकट में हैं।
- अगर हिंदी से रंगों के नाम, महीनों के नाम, गिनतियां, फलों और सब्जियों के नाम तक हट जाते हैं, तो भाषा का मूल स्वरूप ही खत्म हो जाएगा।
- आने वाले 50-100 सालों में अगर यही स्थिति रही, तो हिंदी केवल एक “मिश्रित भाषा” बनकर रह जाएगी।
निष्कर्ष
हिंदी और उर्दू दोनों ही भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं। असली चुनौती यह है कि हिंदी को अंग्रेजी के अत्यधिक प्रभाव से कैसे बचाया जाए। भाषा को जीवंत बनाए रखने के लिए जरूरी है कि लेखक, पत्रकार और पाठक अपनी जिम्मेदारी समझें और हिंदी को उसकी मौलिकता और गरिमा के साथ आगे बढ़ाएं।
FAQs – भाषा और हिंदी पर अंग्रेजी का प्रभाव
Q1. हिंदी भाषा को सबसे बड़ा खतरा किससे है?
➡️ हिंदी को सबसे बड़ा खतरा अंग्रेजी के बढ़ते वर्चस्व से है, उर्दू से नहीं।
Q2. क्या हिंदी और उर्दू अलग-अलग भाषाएं हैं?
➡️ हिंदी और उर्दू का मूल एक ही है। दोनों भाषाएं भारतीय संस्कृति से गहराई से जुड़ी हैं।
Q3. क्या भाषा में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग गलत है?
➡️ जरूरी शब्दों का प्रयोग स्वाभाविक है, लेकिन पूरी अभिव्यक्ति अंग्रेजी में कर देना हिंदी को कमजोर करता है।
Q4. उर्दू शब्दों को हिंदी से हटाना सही है क्या?
➡️ नहीं, क्योंकि उर्दू-फारसी के शब्द सदियों से हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं।
Q5. हिंदी भाषा को बचाने के लिए क्या करना चाहिए?
➡️ हिंदी लेखन और पत्रकारिता में खिचड़ी भाषा से बचना, हिंदी शब्दों का उपयोग करना और नई पीढ़ी को शुद्ध हिंदी सिखाना जरूरी है।