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जैन शास्त्रों में वर्णित राम की रामायण

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जैन शास्त्रों में वर्णित राम की रामायण

जैन शास्त्रों में वर्णित राम की रामायण :-

इतिहास में बहुत से महापुरुष हुए हैं लेकिन राम एक ऐसे महापुरुष थे जो मात्र एक संस्कृति अथवा संप्रदाय से बंधे हुए नहीं है कहने का मतलब यह है की राम का उल्लेख बड़े ही आदर के साथ अनेक धर्मों में मिलता है राम का व्यक्तित्व जैन धर्म या फिर हिंदू धर्म में ही उल्लेखित नहीं है बल्कि बौद्ध धर्म आदि में भी राम का उल्लेख मिलता है जिसके माध्यम से हम राम के व्यक्तित्व के महत्व को समझ सकते हैं कि राम का व्यक्तित्व अपने समय में कितना व्यापक रहा होगा।
उक्त लेख के माध्यम से हम जैन शास्त्रों में वर्णित राम के व्यक्तित्व पर चर्चा करेंगे तथा साथ में ही कुछ लोक प्रचलित भ्रांतियों पर भी विचार करेंगे।
राम का व्यक्तित्व अपने समय में कितना व्यापक रहा होगा इसका अंदाजा हम मात्र उनकी एक उपाधि / विशेषता से लगा सकते हैं।
'मर्यादा पुरुषोत्तम'
इतिहासकारों ने राम के लिए ही मर्यादा पुरुषोत्तम का प्रयोग किया है शायद इतिहास में राम के अलावा किसी और महापुरुष के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम का प्रयोग नहीं हुआ।
वर्तमान समय में 'मर्यादा पुरुषोत्तम' राम का पर्यायवाची जैसा हो गया है।
राम ने अपने पिता दशरथ की बात का अनुसरण करते हुए 14 वर्ष का वनवास स्वीकार किया था थोड़ा सा ध्यान में आपको उस परिस्थिति की ओर दिलाना चाहता हूं जिसमें अगले दिन राम का राज्याभिषेक होने की घोषणा हो गई हो और इधर राम को यह बताया गया हो कि आपको कल से 14 वर्ष के लिए वनवास जीवन व्यतीत करना है तब राम ने अपने पिता दशरथ की बात का अनुसरण करते हुए 14 वर्ष का वनवास जीवन स्वीकार किया और वनवास की ओर अग्रसर हो गए।
मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि यदि आप ऐसी परिस्थिति में होते तो आप क्या करते?
राम ने उन 14 वर्ष में अपने जीवन को मर्यादित रखते हुए जिस प्रकार से धर्म का पालन किया था उसी आधार पर राम को मर्यादा पुरुषोत्तम की संज्ञा प्राप्त हुई थी।

जैन शास्त्रों में वर्णित राम की रामायण सम्बन्धी कुछ तथ्य :-

• राम लक्ष्मण दोनों भाई अहिंसा प्रधानी तथा जिनधर्मी थे। दोनों भाइयों में अत्यंत स्नेह था। राम बलभद्र हुए हैं तथा राम ने उसी भाव से मोक्ष को भी प्राप्त किया है राम का दूसरा नाम पद्म भी था।
• हनुमान, बाली, सुग्रीव, नील आदि महापुरुष कोई वानर नहीं थे अपितु उनके वंश का नाम वानर वंश था इसलिए लोक में हनुमान, बाली, सुग्रीव, नील आदि को वानर कहा जाने लगा। हनुमान, बाली आदि की कोई पूंछ भी नहीं थी ना ही उनका मुख बंदर जैसा दिखाई देता था बल्कि यह सभी विद्याधर थे इन सभी विद्याधरों को आकाश में गमन करने की विद्या प्राप्त थी।
• हनुमान के जन्म का नाम श्रीशैल था जन्म के उपरांत हनुमान की मां के मामा विमान के माध्यम से आकाश मार्ग से अपने घर की ओर ले जा रहे थे तभी हनुमान खेलते हुए विमान से नीचे जमीन पर स्थित शिला पर गिर गए। जिसके कारण वह सिला टूट गई तभी से हनुमान का नाम श्रीशैल पड़ गया था।
• श्रीशैल का जन्मोत्सव हनुरूह द्वीप में मनाया गया जिसके कारण उनका नाम हनुमान प्रसिद्ध हुआ।
• हनुमान पवनन्जय (पिता) और अंजना (माता) के पुत्र थे, पवन (वायु, हवा) के पुत्र नहीं।
• हनुमान, कामदेव होने के कारण बहुत सुंदर थे तथा उन्होंने उसी भाव से मोक्ष को भी प्राप्त किया।
• सुग्रीव के बड़े भाई बाली को राम ने नहीं मारा था बल्कि बाली ने तो बहुत पहले ही जिनदीक्षा धारण कर ली थी।
• जैसा कि जगत में प्रचलित है कि राम लक्ष्मण हिरण का शिकार करने के लिए गए थे तभी रावण ने सीता जी का हरण कर लिया था यह बात सर्वथा असत्य है क्योंकि जब सीता जी का हरण हुआ था तब राम लक्ष्मण खरदूषण से युद्ध कर रहे थे ना कि हिरण का शिकार करने गए थे।
• रावण के जन्म का नाम दशानन था एक दिन रावण नौ मोतियों वाला एक हार पहना हुआ था जिसमें उसके नौ प्रतिबिंब और झलक रहे थे। इस प्रकार कुल 10 मुख दिखने के कारण उसका नाम दशानन प्रसिद्ध हो गया। ना कि 10 मुख होने के कारण ।
• रावण महा पराक्रमी, भगवान शांतिनाथ का परम भक्त और अनेक विद्याओं का स्वामी था।
• रावण, कुंभकर्ण, विभीषण, इन्द्रजित कोई राक्षस नहीं थे बल्कि इनके वंश का नाम राक्षस था इसलिए लोक व्यवहार में रावण, कुंभकर्ण, विभीषण, इन्द्रजित आदि को राक्षस कहा जाने लगा। ये सभी विद्याधर थे ये सभी जैन धर्म के सच्चे अनुयायी होने के साथ-साथ अहिंसा धर्म का पालन करने वाले थे।
• रावण, कुंभकर्ण, विभीषण आदि मद्य, मांस और मधु का सेवन नहीं करते थे साथ ही शिकार आदि भी नहीं करते थे।
कुंभकर्ण 6 महीने तक नहीं सोते थे बल्कि सामान्य मनुष्य के समान ही सोते थे।
• रावण तो भविष्य में तीर्थंकर होंगे। इंद्रजीत और कुंभकर्ण युद्ध में नहीं मारे गए थे बल्कि उन्होंने मुनि दीक्षा अंगीकार करके मोक्ष प्राप्त किया था।
• रावण को लक्ष्मण ने मारा था, ना कि राम ने। क्योंकि रावण प्रति नारायण था और लक्ष्मण नारायण थे और ऐसा नियम है कि नारायण, प्रति नारायण को मारता है।
• हनुमान, बालि, सुग्रीव, नील, महानील, राम, रावण के इंद्रजित आदि अनेक पुत्र और कुंभकर्ण आदि अनेक महापुरुषों ने जिन दीक्षा लेकर महान तप द्वारा मोक्ष रूपी लक्ष्मी को प्राप्त किया है तथा सीता, मंदोदरी (रावण की पत्नी), चन्द्रनखा (रावण की बहन) आदि ने भी आर्यिका दीक्षा ली।
• सीता के युगल पुत्रों का नाम जैन ग्रंथों में लवण और अंकुश मिलता है जिसे लोक व्यवहार में लव और कुश के नाम से जानते हैं।
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