बहती नदी - सी है हिंदी भाषा बदलती रहती है इस पर तो सभी सहमत हैं, लेकिन भाषा में जो बदलाव आता है उसे लेकर राय अलग - अलग है। हिंदी दिवस के मौके पर पढ़ें, इस मुद्दे पर दिव्य प्रकाश दुबे की राय :-
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भाषा को स्वर्गीय न बनाएं : दिव्य प्रकाश दुबे |
भाषा को स्वर्गीय न बनाएं: दिव्य प्रकाश दुबे का नज़रिया
हिंदी भाषा को शुद्ध करने की बजाय आसान और जीवंत बनाएँ। जानें हिंदी vs उर्दू, Court Language, SEO Blogging और हिंदी का भविष्य।
भाषा कोई शुद्ध घी नहीं है जिसे एकदम साफ़ और बिना मिलावट के पाया जाए। भाषा नदी की तरह होती है, ठीक गंगा की तरह। उसमें अलग-अलग शब्द, लहजे, बोलियाँ और संस्कृतियाँ मिलती रहती हैं, लेकिन वह फिर भी अशुद्ध नहीं होती।
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भाषा शुद्ध क्यों नहीं हो सकती?
जब भी समाज बदलता है, उसकी बोली और भाषा भी बदलती है। आज हम जिस तरह से हिंदी बोलते हैं, वह हमारे दादाजी या परदादी की हिंदी से अलग है। अगर भाषा को “शुद्ध” करने की कोशिश करेंगे तो यह नदी की धारा को रोकने जैसा होगा। जब पानी बहना बंद हो जाता है तो वह तालाब बन जाता है और धीरे-धीरे सड़ने लगता है। यही हाल भाषा का भी होगा।
भाषा का असली मकसद
भाषा का उद्देश्य संवाद (Communication) है। अपनी बात को दूसरे तक पहुँचाना ही भाषा का मूल है। इसके लिए किसी डिग्री या विशेषज्ञता की ज़रूरत नहीं है। एक रिक्शावाला, चायवाला या गली में बैठकर बातें करने वाले लोग भी भाषा के असली फैसले लेते हैं, न कि विश्वविद्यालय या दफ्तरों में बैठकर तय करने वाले लोग।
क्या हिंदी और उर्दू अलग हैं?
हिंदी को उर्दू से अलग मानना सही नहीं है। दोनों भाषाएँ एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हैं। उदाहरण देखें:
“मैं कमरे में आया और मैंने अपनी कमीज़ उतारकर कुर्सी पर रख दी। विंडो खोली और आकाश की ओर देखने लगा।”
इस वाक्य में कमरा, कमीज़, कुर्सी अरबी और तुर्की से आए हैं, विंडो अंग्रेज़ी से और आकाश संस्कृत से। तो क्या यह हिंदी नहीं रही? यह हिंदुस्तानी भाषा है।
भाषा का लोकतंत्र
भाषा लोगों के बीच से निकलती है। यही कारण है कि राही मासूम रज़ा ने महाभारत के संवाद लिखते समय कहा था कि वे जनता से संवाद करना चाहते हैं। आम आदमी जिस भाषा में बात करता है, उससे किसी को यह हक नहीं कि वह छीन ले।
हिंदी का भविष्य
हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है। आज हिंदी में वेबसाइट कंटेंट, SEO ब्लॉगिंग, ट्रांसलेशन, ऑडियो बुक्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर बहुत काम हो रहा है। छोटे शहरों से आने वाला युवा भी रेडियो, टीवी या डिजिटल प्लेटफॉर्म पर कॉपीराइटर बन सकता है।
भाषा को दोस्त की तरह अपनाइए, न कि बंधन की तरह। खासकर अदालतों और सरकारी दफ्तरों में अगर आसान हिंदी हो तो आम लोग भी आदेशों और कानून को सही ढंग से समझ पाएंगे।
FAQs: भाषा और हिंदी से जुड़े सवाल
Q1. क्या भाषा को शुद्ध बनाना जरूरी है?
👉 नहीं, भाषा का मकसद संवाद है। अगर इसे शुद्ध करने की कोशिश करेंगे तो इसका विकास रुक जाएगा।
Q2. हिंदी और उर्दू में क्या अंतर है?
👉 हिंदी और उर्दू दोनों आपस में मिली-जुली भाषाएँ हैं। इनमें अरबी, फारसी, संस्कृत और अंग्रेज़ी के शब्द मिलते हैं। इन्हें अलग करना व्यर्थ है।
Q3. क्या हिंदी का भविष्य सुरक्षित है?
👉 हाँ, हिंदी का भविष्य काफी उज्ज्वल है। डिजिटल प्लेटफॉर्म, SEO Blogging, Translation और Content Writing में हिंदी की माँग लगातार बढ़ रही है।
Q4. क्या कोर्ट और सरकारी दफ्तरों की हिंदी आसान हो सकती है?
👉 बिल्कुल, अगर आदेश और दस्तावेज़ सरल हिंदी में होंगे तो आम आदमी भी उन्हें समझ सकेगा।
Q5. SEO Blogging के लिए हिंदी क्यों ज़रूरी है?
👉 क्योंकि भारत में इंटरनेट पर हिंदी उपयोगकर्ताओं की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। High CPC keywords और Adsense Friendly Content के लिए हिंदी अब बड़ा बाज़ार बन चुकी है।