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कैसे बनें सकारात्मक - Be Positive

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कैसे बनें सकारात्मक - Be Positive

 कैसे बनें सकारात्मक - Be Positive :-

वर्तमान समय एकल परिवार का समय है वर्तमान समय में हर कोई व्यक्ति अपने परिवार से जुदा होना चाहता है अर्थात् वह अपने माता पिता तथा भाई बहनों से अलग होना चाहता है। लेकिन जब जिम्मेदारी रूपी समस्याओं का बोझ उसके कंधों पर आता है तो वह बौखला जाता है क्योंकि ना तो उसके पास समस्याओं से निपटने का अनुभव है, ना ही बड़े बुजुर्गों का मार्गदर्शन है इसलिए वह तनाव में चला जाता है अथवा नकारात्मक हो जाता है।
अपनी जिंदगी में सकारात्मक होने में बड़े बुजुर्गों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
हम अपने बड़े बुजुर्गों से कुछ कहावतें सुनते आए हैं, जैसे कि... मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही बन जाते हैं।
इत्यादि बहुत सी कहावतें भारतीय संस्कृति में प्रचलित हैं।
इस संसार में जो भी घटनाएं घट रही हैं या फिर हो रही है उन घटनाओं को हम तीन प्रकार के नजरिए से देख सकते हैं... सकारात्मक, नकारात्मक और मध्यस्थात्मक।
जो व्यक्ति नकारात्मक होते हैं वह किसी भी घटना में कुछ ना कुछ कमियां निकालते ही रहते हैं और जो व्यक्ति सकारात्मक होते हैं वह उसी घटना को सकारात्मक रूप में देखते हैं और उस घाटना की अच्छाई से सीख लेकर दिन प्रतिदिन अपने जीवन को सफलता की ओर ले जाते हैं।
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नकारात्मक और सकारात्मक व्यक्ति की प्रवृत्ति को हम एक उदाहरण के माध्यम से देखते हैं जो कि इस प्रकार से है...
एक गुरु जी के दो शिष्य थे जिसमें से एक शिष्य सकारात्मक सोच वाला तथा दूसरा शिष्य नकारात्मक सोच वाला था 
एक दिन गुरुजी अपने दोनों शिष्यों की परीक्षा लेने के उद्देश्य से वन की ओर प्रस्थान करते हैं। एक फलदार वृक्ष के समीप खड़े होकर गुरु जी ने वृक्ष की ओर देखा और अपने शिष्यों से कहा की इस वृक्ष को ध्यान से देखो। फिर उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि तुम्हें क्या दिखाई देता है?
सकारात्मक सोच रखने वाले शिष्य ने अत्यंत विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया कि गुरुजी! यह वृक्ष बहुत ही विनम्र है लोग इसको पत्थर मारते हैं फिर भी यह वृक्ष बिना कुछ कहे ताजे फल ही देता है इसी प्रकार इंसान को भी विनम्र होना चाहिए। कितनी भी परेशानियां क्यों न आए। फिर भी इंसान को विनम्रता और त्याग की भावना नहीं छोड़नी चाहिए। इंसान को फलदार वृक्ष की तरह अपना जीवन परोपकार के उद्देश्य पूर्वक जीना चाहिए। परमार्थ में ही अपने जीवन का पालन करना चाहिए।
नकारात्मक सोच रखने वाले शिष्य ने गुस्से से कहा कि गुरुजी! यह वृक्ष बहुत ही धूर्त है बिना पत्थर मारे यह कभी भी फल नहीं देता है इससे फल लेने के लिए इसे पत्थर से मारना ही पड़ता है। इसी प्रकार मनुष्य को अपनी आवश्यकता की चीजें दूसरों से छीन लेनी चाहिए। यदि संसार में जीना है तो पत्थर मारे बिना काम नहीं चलेगा। कुछ अभीष्ट की प्राप्ति का सबसे सरल उपाय पत्थर मानना ही है।
अब यह उदाहरण हमारे सामने हैं वृक्ष दोनों शिष्यों के लिए समान है लेकिन फर्क सिर्फ सोच का है। वृक्ष दोनों शिष्यों के बीच किसी भी प्रकार का प्रभेद नहीं कर रहा है लेकिन दोनों शिष्यों की सोच के कारण वृक्ष के प्रति दृष्टिकोण बदल गया है।
सकारात्मक सोच हमारे जीवन पर बहुत गहरा असर डालती है इसलिए हमें अपने जीवन की कठिन से कठिन परिस्थिति में सकारात्मक बना रहना चाहिए। जबकि नकारात्मक सोच हमारे जीवन पर बहुत विपरीत असर डालती है इसलिए हमें अपने जीवन की कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी नकारात्मक सोच नहीं रखनी चाहिए क्योंकि नकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति अच्छी से अच्छी सी चीजों में भी बुराइयां ढूंढ ही लेता है।
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अधिकतर व्यक्ति नकारात्मक क्यों हो जाते हैं?
अधिकतर व्यक्ति नकारात्मक इसलिए हो जाते हैं क्योंकि उनको लगता है कि प्रकृति ने उनके साथ अन्याय किया है जबकि ऐसा होता नहीं है।
जिस प्रकार जन्म के बाद मरण होना अनिवार्य तथा अटल सत्य है उसी प्रकार यह बात भी परम सत्य है कि प्रकृति में अन्याय नहीं हैं।
गुलाब के फूल के माध्यम से हम यह सीख सकते हैं कि गुलाब का फूल कांटों से घिरा होने के बावजूद भी संसार को खुशबू ही देता है हालांकि गुलाब का फूल चारों तरफ से संकटों से घिरा हुआ है लेकिन वह अपनी खुशबू को बिखेरने रूपी कार्य को नहीं छोड़ता उसी प्रकार हमें भी विपरीत से विपरीत परिस्थितियां होने के बावजूद भी सकारात्मक रूपी सोच को नहीं छोड़ना चाहिए।
सुख-दुख, ठंडी-गर्म हवा की भांति आते जाते रहते हैं लेकिन हमें वृक्ष की भांति अपनी मौलिक सोच को कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

भारतीय संस्कृति परोपकार की संस्कृति है जैसा कि भारतीय संस्कृति में कहा गया है कि..
परोपकार: पुण्याय पापाय परपीडनम् |
अर्थात् दूसरो का उपकार करने से पुण्य होता है और दुःख देने से पाप।
एक प्रचलित कहावत भी है -परहित सरिस धरम नहि भाई, परपीड़ा सम नहि अधिकाई।
दोस्तों! अंत में इतना ही कहना चाहता हूं कि सकारात्मक सोच का अर्थ नकारात्मक बातों को कम सोचना है। सकारात्मक सोच की भी अपनी एक सीमा होती है। नकारात्मक सोच को बिल्कुल से समाप्त नहीं कर देना चाहिए।
सकारात्मक सोच से व्यक्ति की उन्नति होती चली जाती है तथा अनावश्यक तनाव से व्यक्ति बचता है, जिससे उसका स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।
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लगातार पूछे जाने वाले प्रश्न : Be Positive

क्या Healthy Diet का Positive Thinking से कुछ Connection है?
जी हां, बिल्कुल है। Healthy Diet से पूरे शरीर का विकास होता है। Healthy Diet से हमें विभिन्न तरह के पोषक तत्व मिलते है, जैसे कार्ब्स, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण, विटामिन आदि। जब सभी प्रकार के पोषण तत्व शरीर में पहुंचेंगे तो स्वास्थ्य भी सही रहेगा।
अच्छे स्वास्थ्य का मतलब बड़े मसल्स या फिर किसी अभिनेता की तरह 6 पैक एब्स होना जरूरी नहीं। जब Body Healthy होगी, तभी Mind भी Healthy होगा। Healthy Mind में ही अच्छे विचार आएंगे और आप सकारात्मक सोचेंगे।

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