![]() |
धनतेरस नहीं, धन्य तेरस बोलिए! |
धनतेरस नहीं, धन्य तेरस बोलिए!
सभी को सादर जय जिनेंद्र!
आज कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी है कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी का जैन धर्म में विशेष महत्व है क्योंकि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान महावीर की दिव्य ध्वनि अंतिम बार खीरी थी इसलिए कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धन्य हो गई थी।
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को जैन धर्म में धन्यतेरस भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन भगवान महावीर की दिव्य ध्वनि अंतिम बार खीरी थी इसलिए कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धन्य माना गया।
धन्य तेरस को क्यों मनाते हैं :-
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान महावीर ने बिहार के पावापुरी के पदम् सरोवर में योग निरोध धारण किया था। जिस कारण यह कार्तिक कृष्ण माह की 'त्रयोदशी' धन्य हो गई थी!
हमारे इस हुन्डावसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर चौदहवाँ गुणस्थान के अंतिम दो समयों में अपनी शेष 85 कर्म प्रकृतियों का क्षय कर 18000 शीलों का पालन कर मोक्ष प्राप्ति के लिए ध्यानस्थ हुए थे। इसीलिए हम श्रमण संस्कृति के अनुयायी धन्य तेरस मनाते है।
कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान महावीर ने बाह्य समवसरण लक्ष्मी का त्याग कर मन-वचन और काय को स्थिर कर परम ध्यान में लीन होकर निरोध धारण किया। भगवान महावीर के योगों के निरोध की भव्य घटना से कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धन्य हो गई थी। इसलिए कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धन्यतेरस के नाम से विख्यात हुई।
जैन मान्यता के अनुसार धन्यतेरस का धन से दूर-दूर तक कोई भी संबंध नहीं है। लेकिन काल के प्रभाव से वर्तमान समय में धन्यतेरस को धनतेरस से जोड़ दिया है। जो कि जैन मान्यता के विपरीत है।
धन्य तेरस को कैसे मनाएं :-
'धन्य तेरस' को जैन आगम में 'ध्यान तेरस' भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन भगवान महावीर स्वामी ने तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिए योग निरोध के लिए चले गए थे।
अतः हमें भी भगवान महावीर स्वामी की तरह योग निरोध की भावना धारण कर संसार सागर से तिरने के लिए अपनी आत्मा का मनन करते हुए धन्यतेरस मनाना चाहिए।
इस प्रकार धन्यतेरस मनाने से हमें भी निकट भविष्य के किसी भाव में मोक्ष रूपी लक्ष्मी प्राप्त हो सके तभी हमारा जन्म सफल होगा क्योंकि मनुष्य भव में ही व्रत, तप, संयम और ध्यान को धारण किया जा सकता है।